सत्ता संग्राम: राजनीतिक उठापटक झेलने को मजबूर क्यों है जनता

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महाराष्ट्र में सत्ता का संग्राम चरम पर है। महा विकास आघाडी गठबंधन की सरकार खतरे में है। जहां मुख्यमंत्री और गठबंधन दलों के वरिष्ठ नेता मुंबई में सरकार बचाने की चर्चा कर रहे हैं। वहीं शिवसेना के वरिष्ठ नेता एकनाथ शिंदे अपनी ही पार्टी की कई विधायकों को लेकर गुवाहाटी के होटल में चर्चा कर रहे हैं। महाराष्ट्र के राज्यपाल कोरोना पॉजिटिव है। जबकि मुख्यमंत्री एक ही दिन में कोरोना पॉजिटिव हुए और फिर नेगेटिव भी हो गए। कुल मिलाकर कांग्रेस, शिवसेना और एनसीपी मिलकर सरकार बचाने की जुगत कर रहे हैं, वहीं मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे पार्टी के विधायकों को मनाने के लिए मुख्यमंत्री पद छोड़ने की बात कर रहे हैं। जबकि शिवसेना के बागी विधायक आगामी रणनीति तैयार करने में जुटे हैं और जनता यह सोच कर पछता रही है कि आखिर उन्होंने वोट देकर कौन सी गलती की होगी।
जनता को उम्मीद रहती है कि सरकार जनता के विकास के लिए कार्य करेगी, लेकिन जिस तरह हमारी राजनीति के हालात हो रहे हैं उससे ऐसा लगता नहीं कि किस सरकारें जनता के हितों की चिंता करती है। जिस तरह से सत्ता पलटने के लिए शह मात का खेल होता है, उसमें विकास कहीं दब कर रह जाता है और अगर किसी को इसका लाभ मिलता है तो वह हैं राजनीतिक दल और राजनीतिज्ञ।
महाराष्ट्र में भी एक-दो दिन में सत्ता को लेकर स्थिति साफ हो जाएगी लेकिन इस उठापटक में जो नुकसान होगा वह सिर्फ जनता का होगा। चाहे वह नुकसान आर्थिक रूप से हो चाहे विकास कार्यों में सत्ता संघर्ष के कारण होने वाली देरी की वजह से। अगर राज्य में विधानसभा चुनाव की नौबत आई तो इसका खर्च भी जनता की जेब से ही होगा। आखिर राजनीति करने वाले जनता की भावनाओं के अनुरूप और उनके हित की राजनीति भी करेंगे या देश की राजनीति के वर्तमान से भी बुरे दौर देखने को मिलेंगे।