विक्रम—बेताल तो हमारी ड्यूटी का हिस्सा हुआ साहिब: एसडीआरएफ

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जहां पैदल चलना ही पड़ता है भारी, वहां एसडीआरएफ ने निभाई बड़ी जिम्मेदारी

बागेश्वर। अंधेरी काली रात में भीषण बारिश और घने बियावन जंगल का उबड़-खाबड़ रास्ता।
ऐसे में अगर किसी इंसान के कांधो पर प्राणविहीन किसी के शरीर का बोझ लदा हो तो उसकी हालत कैसी होगी, यह सोचकर ही घबराहट होने लगती है। लेकिन कुछ ऐसे भी लोग हैं जो इस तरह के हालात में निर्विकार भाव से अपनी ड्यूटी निभाते हैं।

इन्हीं जांबांजों की एक टुकड़ी में एसडीआरएफ भी शामिल है। कपकोट में तैनात एसडीआरएफ की टीम भी इस तरह के हालातों से रूबरू होते रहती है। हालांकि जवानों के लिए यह महज उनकी ड्यूटी होती है, लेकिन आम इंसान के लिए उनके द्वारा निस्वार्थ ढंग से किया गया कार्य प्रेरणा देने वाला बन जाता है।
दरअसल एसडीआरएफ कपकोट की टीम को देर शाम शिखर पर्वत पर बसे मूलनारायण मंदिर में नैनीताल जिले के नगला पंतनगर निवासी 28 वर्षीय हेमंत राठौर की बज्रपात से मौत होने की सूचना मिलती है। तुरंत ही टीम के पांच सदस्य और एक चालक घटनास्थल की ओर निकल पड़ते हैं। झोपड़ा से शिखर मंदिर तक जाने के लिए लगभग आठ किमी की तिरछी और बाद में खड़ी चढ़ाई है। झोपड़ा में पहुंचने तक अंधेरा छाने लगा ‌था उप्पर से भारी बारिश भी हो रही थी। सामने खड़ा था घना और विशाल पहाड़। हालात ऐसे थे कि अच्छे खासे लोगों की हिम्मत जवाब दे जाए। मगर कड़े प्रशिक्षण से गुजरने वाले जवान इस मुश्किल वक्त से कैसे हार मान सकते थे। जवानों ने तेजी से कदम आगे बढ़ाए और मंदिर की ओर चल ‌‌दिए। हर कदम पर खराब मौसम चुनौती पेश कर रहा था। टॉर्च की रोशनी के सहारे एक-एक कदम बढ़ाते हुए पांच जवानों का दल मंदिर तक पहुंचा तो वहां कुछ युवकों ने उन्हें टार्च की रोशनी से इशारा किया तो सभी उसी ओर इस उम्मीद में दौड़ पड़े कि सायद युवक घायल होगा तो उसे प्राथमिक उपचार दे उसकी जिंदगी बचा सकें। लेकिन! वो बेजान सा जमीन में पड़ा था। बेजान युवक के साथी बदहवास थे। जवानों के सामने अब असल चुनौती थी। मंदिर से नौजवान के बेजान शरीर को भारी बारिश के ‌बीच कंधे में उठाकर सड़क तक लाना ‌था। घने अंधेरे में खड़ी पहाड़ी पर बना संकरा रास्ता और एकमात्र टॉर्च की रोशनी ही उनका सहारा थी। बारिश के कारण रास्ते में हो रही फिसलन से खुद को भी बचाना था। जवानों ने आपस में बात की और शव को उठा चल दिए सड़क की ओर। कहते हैं ना कि जब परेशानी अधिक हो तो कुछ न कुछ अनहोनी हो ही जाती है। ऐसा ही हुआ एसडीआरएफ की टीम के साथ। शव को उठाए जवान मंदिर से निकले तो थे सड़क की ओर, लेकिन खराब मौसम और बारिश के बीच रास्ते का सही अनुमान नहीं लगा सके और जंगल में भटक गए। आधी रात का समय, जब लोग बिस्तर के भीतर हसीन सपनों की दुनिया में विचरण कर रहे होंगे, एसडीआरएफ की टीम उस युवक के बेजान शरीर को विक्रम—बेताल के किस्से—कहानियों की तरह कंधे में उठाकर जंगलों की खाक छान रहे थे। घंटो भटकने के बाद आखिरकार सही रास्ता दिखा और वो शव को लेकर सड़क तक पहुंच गाड़ी में लद तेजी से कपकोट अस्पताल में इस उम्मीद में दौड़ लगाई कि क्या पता कुछ चमत्कार हो जाए। लेकिन डाक्टरों ने युवक को बेजान घोषित कर दिया। तब तक रात करीब-करीब बीतने को थी और नया सवेरा दस्तक दे रहा ‌था। मिशन पूरा कर सभी जवान अपनी ड्यूटी प्वाइंट पर पहुंचे। अपने शरीर से बारिश में तरबतर हो चुके कपड़ों को निकाल दूसरे कपड़े पहन फिर से अगले फोन के इंतजार में सतर्क हो गए।

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