तमाम उपमानों को
ओढ़ने की विवशता में
गुजरता उनका जीवन
सारी बातें उन पर
सभी फोकस वहीं
सिंगार के नाम पर
एक अदद घड़ी भी
नही पहनने पर
कोई तर्क नही
पुरुष के बारे में
इस कारा के निरसन में
जो वक्त गुजरता है
उसमे फलती हैं
मनुजता की साफ नीयतें
आसमान सी गहरी हैं
वे तमाम वेदनायें
जो उपमेय उपमानों में घिरी
धरती की सहजता
को सदा प्राकृतिक
बना रहना चाहती हैं
डॉ हेमचंद्र दुबे “उत्तर”