लेख – प्रेम प्रकाश उपाध्याय ‘नेचुरल’ उत्तराखंड
(स्वतंत्र लेखन, अन्वेषण,शोध एवं शिक्षण)
यूं तो एशिया महाद्वीप में भारत के भौगोलिक हिस्से का पड़ोसी जो 1947 में भारत से अलग होकर बना, पाकिस्तान कहलाया। लेकिन अब वही पाकिस्तान सरहदों से आगे सरक गया हैं। पूरा जोर लगाये हुए हैं कि यह बीज घर-घर तक पहुच कर उगे। धरती के इस हिस्से के पाकिस्तान को तो हम समय-समय पर खुराक पिलाते रहते है और पानी पिला चुके है। इधर नई मुसीबत उग आयी हैं। बिल्कुल चौमास की घास की तरह। जहा जरूरत भी नही थी पॉव पसार लेती हैं। गली-गली, कूँचे – कूँचे , घर-घर पाकिस्तान उग आया हैं। हर बात का विरोध इनका पसंदीदा पोषण हैं। ये अपना भोजन परजीवियों की तरह पाते हैं। थोड़ा हलचल हुई नही, ये लपक लेते हैं किसी खतरनाक अजगर की तरह निगलने को। पाकिस्तान की तो इमेज ही ऐसी बन गयी कि लोंगो को अगर लघु,दीर्घ शंका की जाना भी होता है तो कोड वर्ड्स बोल कर जाते है। कुछ तो पाकिस्तान लिखा भी नही जा सकता,बस सहना पड़ता हैं। रिश्तों की रेशमी रस्सी को रंगने के लिए। मज़बूरी भी है और मुखबिरी भी। एक का तो इलाज कर भी दिया जाता दूसरा का क्या करें।गूगल सर्च इंजन में ढूंढ मारा तो वही भी इससे परेशान।5g, 6g की स्पीड को वायरस कब लकवा मार जाय, वह भी विरोधियों से परेशान। विरोध ऐसे बिल्कुल जैसे घर में संसद चल रही हो और पाकिस्तान विपक्ष पार्टी बन गयी हो। अब उनके सामने सच, झूठ, सही ,गलत बेमानी से लगते है। उन्हें तो बस विरोध ही करना है। चाहे घर के अंदर हो तो विरोध घर के बाहर तो विरोध। विरोध से शुरू विरोध से खत्म जो ये होते नही हैं। अपनी प्रतिरोध की आदत से वे कभी कभी स्पार्क कर चमक भी जाते है। ये अलग बात है वे चमक देखने से पहले ही आंखों से ओझिल हो जाती है। पानी के बुलबुले की उम्र ही भला कितनी होती है। घड़ी दो घड़ी। फिजिक्स के जडत्व के नियम पदार्थ अपनी स्थिति में परिवर्तन का विरोध करती है। इसके उलट ये परिवर्तन का विरोध कर पदार्थ से अर्थ ही बाहर खिंच लेते हैं। और शून्य के साथ बडे सकूं से खेलते हैं। शोध बताते है इनसे बचने के लिए लोंगो में ऋषि, योगी, तपस्वी बनने की प्रवृत्ति प्रबल हो जाती है। जो इस स्तर तक नही पहुच सका वो मितभाषी का चादर ओढ लेता हैं। वैज्ञानिक होमोसपीएन्स की इस विरादरी पर नज़र लगाए हुए है। उस इसमें विलुप्त प्रजातियों के लक्षण दिखने लगे हैं। अगर ये पाकिस्तान बड़ा तो ज्ञानी चुप हो जाएंगे, ओठ सिले रहेंगे,कई अच्छी चीजें जिनको बाहर आनी थी भीतर ही भीतर जीवाश्म बन जायँगी।
समस्या छोटी नही हैं। ये बड़ी हो रही हैं। कोरोना बम तो हमने टीके से रोक लिया, इस पाकिस्तान का किया जाय?.