हमारे हिस्से आयी केवल लाठियां…….कमल कवि कांडपाल

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मिली होंगी सुविधाएं
हुआ होगा विकास अन्य राज्यों में,
हमारे हिस्से आयी केवल लाठियां।
गहरा गया है रिश्ता अब
लाठी और हम पहाड़ियों के बीच,
मांगों का प्रत्युत्तर बन चुकी लाठियां।
जब भी जो भी मांगा राज्यवासियों ने
उससे पहले झेली लाठियां
कभी राज्य की मांग को लेकर
तो कभी रोजगार की परीक्षा देकर
हमारे हिस्से आयी केवल लाठियां।
अब लाठियों से डर नहीं लगता
डर लगता है भूख से बेरोज़गारी से,
भ्रष्ट हो चुके शासक दमनकारी से।
जब जब भी मुखर होकर एकजुट हुए हम
तब तब तोड़ा गया हमारी एकजुटता को
देकर लाठियों की झड़ी,
सरकारों और हम पहाड़ियों के बीच
लम्बी है लाठियों की यह कड़ी। मिली होंगी सुविधाएं
हुआ होगा विकास अन्य राज्यों में,
हमारे हिस्से आयी केवल लाठियां।

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