एक्सक्लूसिव: चिड़िया के मोह ने बालक किशन को बना दिया वृक्ष पुरुष, जानें पर्यावरण को समर्पित किशन सिंह मलड़ा के पर्यावरण प्रेम की अनसुनी कहानी

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36 साल में 8 लाख पौधों को पेड़ बना धरती को हराभरा करने में दिया योगदान, एक करोड़ पौधों को पेड़ बनाने का है लक्ष्य

बागेश्वर। बचपन की एक घटना ने बागेश्वर के किशन सिंह मलड़ा का जीवन बदल दिया। चिड़िया के प्रति उनके मन में ऐसा मोह हुआ कि उन्होंने पक्षियों का बसेरा बनाने के लिए बचपन में ही पेड़ लगाने का संकल्प ले लिया और वृक्ष पुरुष बन गए। 36 साल से सतत पर्यावरण संरक्षण का कार्य कर रहे मलड़ा बागेश्वर में पानी के दो सूख चुके स्रोतों को रिचार्ज कर चुके हैं। 36 साल में 8 लाख से अधिक पौधों को पेड़ बना चुके हैं। बागेश्वर का कलक्ट्रेट परिसर हो, विकास भवन परिसर या अन्य कोई संस्थान, सभी में वृक्ष पुरुष के लगाए पेड़ लोगों को छांव और शुद्ध आबोहवा दे रहे हैं। मलड़ा की उपलब्धियों को देखते हुए वर्ष 2018 में तत्कालीन राज्यपाल बेबी रानी मौर्य ने उन्हें वृक्ष पुरुष का खिताब दिया।

25 फरवरी 1968 को बागेश्वर के मंडलसेरा में हिम्मत सिंह मलड़ा और देवकी देवी के सुपुत्र मलड़ा के वृक्ष पुरुष बनने की कहानी बड़ी ही रोचक है। वह जब चार-पांच साल के थे, तो एक दिन अपनी मां के साथ अपने ननिहाल पीपलखेत (गैराड़) गए हुए थे। पीपलखेत में बहुतायत में पेड़ थे। पेड़ों में विभिन्न प्रजाति की चिड़िया चहचहा रही थीं। नन्हे किशन ने अपनी मां से एक चिड़िया को पकड़ लाने की जिद की और सवाल किया कि हमारे घर (मंडलसेरा) में इतनी चिड़िया क्यों नहीं होती। मां ने प्यार से समझाया कि बेटा पक्षियों के लिए पेड़ों की आवश्यकता होती है, जहां वह रहती हैं। अब हम भी घर जाकर पेड़ लगाएंगे। वहां भी ऐसी ही चिड़िया चहचहाएंगी।

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बच्चा किशन कुछ दिन ननिहाल में रहने के बाद घर लौट आया। घर आते ही पेड़ लगाने की जिद करने लगा। मां ने कुछ पेड़ भी खेतों में लगाए। उसमें नन्हा किशन पानी देता था। समय के साथ किशन बड़ा होने लगा। कक्षा 6 तक की पढ़ाई बागेश्वर के सरकारी स्कूल में हासिल करने के बाद किशन मां के साथ पिता के पास पठानकोट (पंजाब) चला गया। पिता सेना में कार्यरत थे। वहीं से कक्षा 10 तक की पढ़ाई की। 11वीं से फिर मां के साथ बागेश्वर लौट आया। बागेश्वर से परास्नातक की पढ़ाई हासिल की।

पढ़ाई पूरी करने के बाद एक बार फिर बचपन का ननिहाल का वाकया किशन के दिमांग में घूमने लगा। पर्यावरण संरक्षण के कुछ करने ठानी। वर्ष 1986 में स्वयं को पर्यावरण संरक्षण के कार्य में झोंक दिया। मंडलसेरा में पहला पौधा पीपल का लगाया, जो आज विशाल पेड़ का आकार ले चुका है। उन्होंने मां के नाम पर मंडलसेरा में देवकी लघु वाटिका का निर्माण किया। मलड़ा ने पौधों की नर्सरी बनाना, लोगों को पौधे बांटना और पौधों को पेड़ बनाने का काम में स्वयं को झौंक दिया।

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मलड़ा ने मंडलसेरा और धौलाणी के सूखे जलस्रोत को पुनर्जीवित करने की ठानी। स्रोत क्षेत्र में चौड़ी पत्ती के पौधे लगाकर उन्हें पेड़ बनाना शुरू कर दिया। उनकी मेहनत का ही परिणाम कहा जाएगा कि वर्ष 1999 में मंडलसेरा का जलस्रोत फिर से रिचार्ज हो गया। वर्ष 2004 में धौलाणी का सूखा स्रोत भी एक बार फिर पानी देने लगा। मलड़ा ने राज्य के सभी 13 जिलों में पौधरोपण किया है। देहरादूून के तपोवन में उन्होंने मूंगा रेशम के पौधे लगाए, जो आज पेड़ बन चुके हैं। उन्होंने मंडलसेरा में मूंगा रेशम का बाग तैयार किया है। वर्ष 2012 से रेशम विभाग उनके बाग में मूंगा रेशम उत्पादन का प्रशिक्षण देता है।

अधिकारी भी मलड़ा के कायल

पूर्व में जिले में डीएम रहे भूपाल सिंह मनराल समेत तमाम डीएम और कई जिला जज, डीएफओ उनके कार्य के मुरीद रहे हैं। उन्हें प्रशस्तिपत्रों से नवाजा हैं। वर्तमान डीएम विनीत कुमार, एसपी अमित श्रीवास्तव भी उनके कायल हैं। मलड़ा बताते हैं कि अब वह हर साल 25 हजार पौधों के गमले तैयार करते हैं। लोगों को वितरित करते हैं। साल में करीब 50 हजार पौधों का रोपण करते हैं।

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