कुली बेगार आंदोलन को कुचलने वाले डायबिल और आजादी दिलाने वाले महात्मा गांधी रुके थे यहां
बागेश्वर। देश आजाद हुए 75 साल हो गए हैं। देश की आज़ादी में आंदोलनकारियों के साथ कुछ स्थानों का भी अहम रोल रहा। जिनमें जिला पंचायत का डाक बंगला भी शामिल है। इस बंगले में कुली बेगार आंदोलन को कुचलने वाले और उसे धार देने वाले एक ही कमरे में रहे। आठ साल के भीतर दोनों इस बंगले में रहे। आज एक को राष्ट्रपिता का दर्जा मिला तो दूसरा विलन ही साबित हुआ है। बंगले के बाहर अब संविधान निर्माण बाबा साहेब आंबेडकर की मूर्ति स्थापित की गई है। जिला पंचायत का कार्यालय और सभागार भी है। यहां जिले की अब छोटी सदन चलती है।
बागेश्वर को जिला पंचायत डाक बंगला सरयू पुल से लगा हुआ है। टिन शेड का यह भवन किसी ऐतिहासिक भवन से कम नहीं है। इस डाक बंगले के में 1921 में अंग्रेजी हुकुमत के अल्मोड़ा जिले के डिप्टी कमीश्नर डायबिल 50 गोलियां लेकर कुली बेगार आंदोलन को कुचलने के लिए लेकर रहे। उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन को कुचलने का भरसक प्रयास किया, लेकिन पहाड़ के लोग पहाड़ की तरह अडिग रहे और मकर संक्रांति को कुली बेगारी के रजिस्टर सरयू में बहा दिए और सरयू का जल हाथ में लेकर संकल्प लिया कि अब वह बेगारी नहीं देंगे। इसके ठीक आठ साल बाद महात्मा गांधी 1929 को यहां पहुंचे। उन्हें यहां लाने के लिए कुली बेगार आंदोलन की भूमिका अहम रही। वह भी उसी कमरे में रहे जहां स्वतंत्रता आंदोलन को कुचलने वाला अंग्रेज अधिकारी रहा था, लेकिन जीत आंदोलन को धार देने वालों की हुई। इस ऐतहिसासिक भवन में अब जिला पंचायत का कार्यालय चलता है। आंदोलन का गवाह बना इस भवन की मरम्मत आज तक नहीं हो पाई है। आजादी के 75 साल बाद भी बंगला आंदोलन का गवाह है। अब भवन के आगे संविधान निर्माता की मूर्ति स्थापित है। प्रो. शेखर पाठक की किताब पहाड़ में इस बंगले और आंदोलनों का जिक्र है।
साभार: डी. पांडेय