आलेख-जगदीश उपाध्याय “जैक”
बागेश्वर। नदियों को जीवन दायिनी का दर्जा दिया गया है, लेकिन इनकी दुुर्दशा की सुध लेने वाला कोई नहीं है। लोगों की प्यास बुझाने से लेकर अन्न का उत्पादन कराने में नदियों का अहम योगदान है। बावजूद इसके नदियां अपने अस्तित्व को बचाने के लिए जूझ रही हैं। नदी चाहे छोटी हो या बड़ी, आज प्रदूषण की चपेट में है। कहने को नदियों की सुरक्षा और संरक्षण के लिए तमाम कार्य करने के दावे किए जा रहे हैं, लेकिन नदियों को हम कितनी सुरक्षा दे रहे हैं, यह सोचने वाली बात है।
पानी की जीव के पैदा होने से लेकर मरने तक अहम भूमिका रहती है। जहां शरीर में सबसे अधिक पानी की मात्रा होती है, वहीं शरीर को जीवित रखने के लिए भी सबसे अधिक जरुरत पानी की होती है। बारिश, प्राकृतिक स्रोत, छोटे गधेरे मिलकर एक नदी का निर्माण करते हैं और यही नदी लोगों को जीवन प्रदान करती है। हमारे पूर्वजों ने नदियों की इस महत्ता को समझा और इनका संरक्षण किया। नदियों को गंदा करना हमारे धर्म ग्रंथों में पाप माना जाता था, लेकिन आज नदियों में गंदगी डालना चलन सा बन गया है। कई नदियों के होते हुए भी लोग जल संकट का सामना कर रहे हैं, लेकिन कोई भी अपनी गलती मानने को तैयार नहीं है। आखिर नदियों को कब गंदगी, खनन के घाव और अतिक्रमण की चपेट से मुक्ति मिलेगी। क्या लोगों को मुक्ति प्रदान करने वाली नदियों को अब मुक्ति के लिए भी कोई तपस्या करनी होगी।
कहने को बहुत कुछ है, लेकिन कोई सुने तब बात है। एक मेरे कहने या सुनने से कुछ होने वाला नहीं। कई लोग इस लेख को मेरे मन का गुुबार भी कह सकते हैं, लेकिन वास्तवितता यही है कि जिन नदियों के प्रति हमें कृतज्ञ होना चाहिए था, हमारी कृतज्ञनता के चलते वह सिमटती जा रही हैं। अगर नदियां बोलती तो शायद यही कहती कि “हे भगवान तूने मुझे पापमोचनी बनाया था, लेकिन मैैंने ऐसा कौन सा पाप किया कि मनुष्य मेरे उपकारों को भूलकर, मुझे बर्बाद करने पर तुला है।”