प्रेम प्रकाश उपाध्याय नेचुरल
महान दार्शनिक, विद्वान, चिंतक,भारत के शिल्पी स्वर्गीय श्री डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी का जन्म दिन पूरे देश में शिक्षक दिवस के रूप में बड़े हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता हैं। शिक्षकों की समस्याओं, कठिनाईयों का भी समाधान हो शायद इसी मंसूबे से यह दिन शिक्षक दिवस मनाने की परंपरा का विचार स्वतंत्र भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति, द्वितीय राष्ट्रपति के विचार रहे होगें.किसी भी दिवस को मनाने अथवा जानने के पीछे एक खास लक्ष्य छिपा रहता हैं। जब हम इस लक्ष्य तक पहुंचने का प्रयास करते है तभी इस खास दिवस की सार्थकता सिद्ध होती है और भविष्य में इसकी प्रासंगिकता बनी रहती हैं। शिक्षकों को समर्पित यह दिन हमें अपने शिक्षकों के जीवन को जानने, समझने, सीखने,ग्रहण करने, उसको अनुभव करने एवं अपने हिस्से की भागीदारी यानी ऋण चुकाने का भी होता हैं। ये शिक्षक ही है जिनके पवित्र हाथों से हमने, आपने, सबने कुछ ना कुछ सीखकर अपने जीवन की गाड़ी को आगे बढ़ाया हैं और बड़ा रहे हैं. परिणाम अशिक्षित भारत से आज हम शिक्षित और विशेषज्ञ भारत की ओर अग्रसर हैं. आज हमारा मुल्क, प्रांत विविध क्षेत्रों में नई नई ऊंचाइयों को छू रहा हैं। इसका स्वाद हम सब चख रहे हैं।
यह भले ही सूचना क्रांति का हो, इंटरनेट से बदलती तकनीक का हो,चिकित्सा,अंतरिक्ष, परिवहन,खाद्य पोषण,स्वस्थ जीवन किसी का हो शिक्षक कही ना कही अपनी अग्रेत्तर भूमिका में हैं। शिक्षा तभी सर्वांगीण विकास का हथियार बनती है जब इसको जमीन में उतारने वाले हाथ मजबूत हो, कर्मठ हो और योग्य हो. शिक्षकों ने ये सब अपनी मेहनत, लगन, समर्पण, सेवा भाव से कर दिखाया हैं। स्पष्ट बात है शिक्षक सभी का ध्यान रखते हैं। इसीलिए महान संत कबीर दास जी की ये पंक्ति अपने अर्थ को सच साबित करती नज़र आती हैं।”गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काको लागो पाए,बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताय”लेकिन आज का ये गोविंद, भगवान भी चाहता हैं की कोई उसका भी ध्यान रखें।मात्र गोविंद की संज्ञा रख देने भर से समस्या का हल नही होने वाला है बल्कि कुछ अपनी ओर से पहल करने की व्यवस्था को भी अनिवार्य बनाए जाने की जरूरत हैं.एक बेजुवां पत्थर की मूर्ति में प्राण फुककर जीवन देने वाला भी चाहता है की कोई उसके जीवन में भी झांके, उसकी समस्याओं को समाधान तक पहुंचाएं.इतिहास गवाह है जिस देश ने शिक्षकों का संजदगी से ध्यान रखा वे निरंतर प्रगति करते गए और आज दुनिया के मानचित्र में उभरते हुए शक्ति स्रोत के रूप में पहचाने जा रहे हैं।वर्तमान में देखा जा रहा ही कई दफा शिक्षकों की समस्याओं के प्रति आया राम गया राम का नजरिया रखा जा रहा हैं।खास तौर से माध्यमिक का शिक्षक अपने सेवा काल में जहां से उसने शुरूआत की थी आज भी वही का वही हैं।बहुत पीड़ा देने वाली बात हैं। शिक्षकों के विषयों को कैसे गैर जरूरी समझा जाता हैं, आश्चर्य बनता हैं.कुर्सी और व्यवस्था को इसको समझना चाहिए,सुधार करना चाहिए. कक्षा कक्षों में देश के भविष्य का निर्माण कार्य होता हैं। शिक्षक को मात्र राष्ट्र निर्माता कह देने भर से हल होने वाला नहीं हैं।पदोन्नति एवं आगे बड़ने के अवसरों के अभाव में कुंठा, अवसाद, विचलन ,निराशा अगर घर कर गई तो इससे राष्ट्रीय उत्पाद की गुणवत्ता कैसे बढ़ेगी। यक्ष्य प्रश्न हैं ❓हमें भारत को विकसित राष्ट्र की पंक्तियों में खड़ा करना है तो फिर समभाव से बहुत जल्दी इसके समाधान के लिए कार्य करना चाहिए. समय समय पर गठित विभिन्न आयोगो ने भी कम से कम पूरे सेवा काल में कार्मिकों को बेहतर गुणवत्ता के लिए तीन प्रमोशन (एसीपी)देने की जबर्दस्त पैरवी की है, लेकिन जमीन हकीकत सावन के अंधे के समान बनी हैं।गौर तलब है दूसरे सेवा क्षेत्रों में लगातार पदोन्नति हो रही है.कार्मिकों का मनोबल बड़े,सेवा में गुणवत्ता रहें और नई चुनौतियों से जूझने का हुनर उत्पन्न हो इसलिए पदोन्नति इसमें एक उत्प्रेरक की तरह कार्य करती है। और देश की प्रगति होती जाती हैं।किसी संसाधन से बेहतर परिणाम, उत्पाद प्राप्त करने के लिए संसाधनों का भी ध्यान रखना पड़ता है। आगे बड़ने के अवसरों के अभाव के वावजूद भी माध्यमिक शिक्षक विषम परिस्थितियों में निस्वार्थ भाव से बच्चों के सर्वांगीण विकास में अनवरत लगे हैं। ये गुरुवरदायित्व निभाने की ईश्वर उन्हे शक्ति दे।”ये माना की तुमने खुदा सोचा उसेकही इसीलिए तो नहीकि सब कुछ मांग लो उस से,कभी कम गिला शिकवा के भी काम चला लोकुछ अपने देने की बारी याद आयी तो मौन व्रत रखा उससेकभी आंख से आंख मिलाना जरूर.अपने बनने की कहानी का किरदार नजर आएगा उससे।
प्रेम प्रकाश उपाध्याय “नेचुरल” बागेश्वर उत्तराखंड(लेखक शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े हैं)