प्रेम, समर्पण और यथार्थ की झकझोर देने वाली कहानी है हेमवंती

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फिल्म समीक्षा

*शादी के बाद टूटा दुःखो का पहाड़, चली गई हेमवंती की आँखों की रोशनी..हेमवंती और उत्तम की प्रेम कहानी..!* का सच्चा स्वरूप पर्दे पर देखिए गढ़वाली मूवी *हेमवंती* में।
गढ़वाल और कुमाऊं अंचल ने संस्कृति के उन्नयन और उत्थान हेतु नित नए मील के पत्थर खड़े किए हैं,इसी कड़ी में बीते २४अप्रैल को देहरादून में रिलीज हुई गढ़वाली मूवी *हेमवंती* का जिक्र बहुत जरूरी प्रतीत होता है।
*जहां मोहब्बत मजबूरी नहीं ताकत बन जाती है* की टैग लाइन पर *उत्तराखंडी लोक कलाकार uk 13* बैनर तले लेखक,निर्माता और निर्देशक सचिन रावत के निर्देशन में फिल्माई गई इस सच्ची कहानी पर आधारित लघु फिल्म का कथानक और फिल्मांकन का सामंजस्य इतना सटीक बना है कि पूरे सवा घंटे दर्शकों को बांधे रखने की पूरी ताकत रखता है, उत्तराखंडी संस्कृति का पूरा पूरा समावेश फिल्म की लोकेशन और डायलॉग्स में देखने को मिलता है।
फिल्म की सूटिंग लोकेशन गढ़वाल अंचल के बजीरा (जखोली), बधानी ताल,गुप्तकाशी, डीलाना गांव की  है।
छायांकन निर्देशक सौरभ पंवार ने फिल्म में बेहतरीन छायांकन स्टोरी के अनुरूप किया है।
फिल्म के मुख्य कलाकार अनुष्का पंवार,पीयूष बुटोला,विनीता राना, लखपत राना,अंकिता मेहरा,शीतल नेगी, अवनि राना, त्रिपण राना,सचिन रावत, रितिक राना,सविता पुंडीर ने इस लघु फिल्म में कहानी के अनुरूप जीवन्त अभिनय किया है।
फिल्म के असली किरदार रुद्रप्रयाग जिले के उत्तम गांव – फलासी दुर्गाधार चोपता के उत्तम  और हेमवंती हैं।
फिल्म का कथानक पूरी तरह से पर्वतीय मध्यम वर्गीय परिवारों के इर्द गिर्द घूमता है। सच्ची कहानी पर आधारित इस लघु फिल्म में उत्तम और हेमवंती को प्यार होता है और उनका प्यार परिवारों की सहमति से परवान भी चढ़ता है दोनों एक दूसरे को अपने जीवन की सच्चाई भी खुलकर बता देते हैं।सामान्यतया प्यार और विवाह के मामलों में दोनों ही पक्ष अच्छाइयों का बखान करते हैं और बुराइयों पर पर्दा डाल देते हैं परन्तु इस कहानी में हेमवंती उत्तम को पहले ही बता देती है कि उसे शुगर की बिमारी है जिसका कोई स्थाई इलाज उसे नहीं मिल पा रहा है,उत्तम भी प्यार की पींगे बढ़ाते समय खुद को पुलिस की नौकरी में बताता था परन्तु विवाह प्रस्ताव के दौरान बता देता है कि वह कोई सरकारी नौकरी में नहीं है बल्कि होटल प्रबन्धन की पढ़ाई करता है दोनों एक दूसरे की कमजोरियों को समझ एक दूजे के हो जाते हैं।फिल्म का यह सत्यवादी संदेश बहुत प्रभावशाली है कि दो के एक होने में खुलकर कमियां और खूबियां सामने आ जाएं तो जीवन सहज महसूस होता है।
शुगर बढ़ जाने कारण हेमवंती को विवाह के कुछ समय बाद ही आंखों में झिलमिलाहट होने लगती है उसे गर्भ स्राव भी हो जाता है और उसकी आंखों की रोशनी पूरी तरह चली जाती है,बावजूद इसके गृहस्थ धर्म और सप्तपदी के साथ फेरों की मर्यादा निभाते हुए दोनों एक दूसरे के प्रति समर्पित हैं रील लाइफ में भी और रियल लाइफ में भी।आंखों की रोशनी चले जाने के बाद भी अंदाजन अनुमान लगाकर हेमवंती गृहस्थी के रोजमर्रा कामों को कुशलता से संचालित कर रही हैं और उत्तम बदली हुई परिस्थितियों में गांव में ही छोटा रेस्टोरेंट चलाकर गृहस्थी की गाड़ी ढो रहे हैं,जिन्दगी जटिल जरूर है पर दोनों का एक दूसरे के प्रति समर्पण इसे चलने लायक भी बना दे रहा है।
खुद की लीवर संक्रमण जैसी गंभीर बिमारी के बावजूद निर्माता निर्देशक सचिन रावत का दावा भी और वादा भी है कि फिल्म से होने वाली आय का बड़ा हिस्सा हेमवंती और उत्तम को सहयोग की जाएगी।
कुल मिलाकर मनोरंजन,मध्यवर्गीय परिवारों की हकीकत,बीमारियों के प्रति लापरवाही, सद्चरित्र,सहजता और ईमानदारी का पुट लिए यह फिल्म न केवल देखी जानी चाहिए बल्कि शुगर बिमारी रोकथाम जागरूकता एवं स्कूली शिक्षा के साथ इसका सार्वजनिक उपयोग भी किया जाना चाहिए।गढ़वाली बोली में बनी इस मनोरंजक और संदेशप्रद लघु फिल्म के संवादों का हिन्दी अनुवाद भी स्क्रीन पर चल रहा होता तो गैर गढ़वाल मूल के संस्कृति प्रेमी भी इसे सहजता से समझ पाते।

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*समीक्षक : हरीश जोशी*
स्वतंत्र पत्रकार

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