कविता: विलय अस्तित्व का हो जब……..।

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शिव नहीं कोई यूं बन जाते,
बचाने पूरे ब्रह्मांड को
वो हलाहल खुद गटक जाते।
शक्ति, साधना, सृजन,संहार
से मिल प्रकृति रच डालते।
पशु- पाश- प्रकृति समहित
शिव शाश्वत बन जाते।
डमरु की लय ताल
धुन एक कर,
स्वर संगीत सुधा बरसाते।
दे अभिव्यक्ति जीवन का इससे,
ख़ुद ॐकार ध्यानमग्न हों जाते।
नहीं अहम कोई
परम् शिवत्व में,
शुभ – मंगल बन
प्रतीक जीवन में,
सीख बड़ी दे जाते।
बिना विलय अस्तित्व के भला,
कहा शिव बन पाते ???
तन – मन सिंचित हो जब प्रेम से
तब कहीं नेचुरल शिव दर्शन हो पाते।

प्रेम “नेचुरल”
उत्तराखण्ड