
बागेश्वर। उत्तराखंड राज्य गठन की रजत जयंती पर मंगलवार को नरेंद्र पैलेस सभागार में आयोजित एकदिवसीय सम्मेलन में “उत्तराखंड ने 25 वर्ष में क्या खोया–क्या पाया” विषय पर मंथन हुआ। जनआंदोलन के नेताओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं और स्थानीय संगठनों ने राज्य की नीतियों, विकास मॉडल और भविष्य की दिशा पर खुलकर चर्चा की।
मुख्य वक्ता चारु तिवारी ने कहा कि पिछले 25 वर्षों में पहाड़ की जरूरतों को बिना समझे विकास मॉडल लागू किए गए, जिसका सबसे बड़ा परिणाम पलायन के रूप में सामने आया है। उन्होंने राज्य की योजनाओं को जनता से दूर और अव्यावहारिक बताते हुए खनन, बांध और पर्यटन आधारित अर्थव्यवस्था पर गंभीर सवाल उठाए। कहा—इनका लाभ स्थानीय लोगों तक नहीं पहुंच पाया।
पीसी तिवारी ने कहा कि उत्तराखंड अपने मूल सपनों—रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य और गांवों के पुनर्जीवन—से भटक गया है। उन्होंने नौकरशाही के बढ़ते प्रभाव और जनता की निर्णय प्रक्रिया से दूरी को बड़ी समस्या बताया। पर्वतीय क्षेत्रों के लिए विशेष आर्थिक नीति की आवश्यकता पर जोर दिया।
प्रभात ध्यानी ने पहाड़ों के खाली होने को आर्थिक नहीं, बल्कि सामाजिक त्रासदी बताया। उन्होंने कहा कि गांव उजड़ते जा रहे हैं, खेती चौपट हो रही है और यह सवाल उठता है कि राज्य की नीतियों का असल लाभ किसे मिला। उन्होंने समुदायों के अधिकार मजबूत करने और युवाओं के लिए स्थानीय स्तर पर रोजगार सृजन की मांग की।
सम्मेलन में रमेश कृषक, कवि जोशी, भुवन कांडपाल, मनोज जोशी, प्रमोद मेहता, उमेश जोशी सहित कई सामाजिक कार्यकर्ता मौजूद रहे।





