2 अक्टूबर 1994 रामपुर तिराहा कांड मामले में 22 पुलिसकर्मियों को गैर जमानती वारंट

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उत्तराखंड राज्य आंदोलन के दौरान 1994 में रामपुर तिराहा कांड के दोषियों को अभी तक सजा नहीं मिल पाई है। 2 अक्तूबर 1994 को दिल्ली जा रहे आंदोलनकारियों पर अत्याचार और 7 लोगों के शहीद होने के मामले में मुजफ्फरनगर के तत्कालीन सिविल लाइन थाने के 22 पुलिस कर्मियों के विरुद्ध अब विशेष अदालत ने कोर्ट में पेश न होने पर गैर जमानती वारंट जारी किए हैं। न्यायालय की इस कार्यवाही पर उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी और विभिन्न राजनीतिक दलों ने मिलीजुली प्रतिक्रिया दी है और इसे उत्तराखंड वासियों के गांव पर एक मरहम बताया है और सरकार से न्यायालय में पैरवी करने की अपील की है।

लंबे संघर्ष और 42 सहादतों के बाद उत्तराखंड राज्य का गठन हुआ। राज्य गठन आंदोलन के दौरान 2 अक्टूबर 1994 को मुजफ्फरनगर में राज्य आंदोलनकारियों पर पुलिस की बर्बरता और अत्याचार का घाव आज तक नहीं भर पाया। दोषियों के खिलाफ कार्यवाही की मांग को लेकर आज भी उत्तराखंड के लोग लंबी लड़ाई लड़ रहे हैं। 2 अक्टूबर 1994 को पृथक उत्तराखंड प्रदेश की मांग को लेकर दिल्ली जा रहे उत्तराखड समर्थकों पर पुलिस फायरिंग और महिलाओं पर अत्याचार के मामले में तत्कालीन थाना सिविल लाइन सहित 22 पुलिस कर्मियों के विरुद्ध विशेष अदालत ने कोर्ट में पेश न होने पर गैर जमानती वारंट जारी किए हैं।

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विशेष सीबीआई अदालत एडीजे 7 शक्ति सिंह ने गैर जमानती वारंट जारी करते हुए आदेश दिया आरोपियों के वकील हाज़री माफी भी रद कर दी गई। आपको बता दें कि रामपुर तिराहा कांड में महिलाओं के साथ बलात्कार, महिलाओं पर अत्याचार के आरोप में सीबीआई ने पुलिस कर्मियों के विरुद्ध मामला दर्ज कर आरोप पत्र कोर्ट में दाखिल किया था। कोर्ट में रामपुर तिराहा कांड के 4 मामले लंबित हैं। 2 अक्टूबर 1994 को मुज़फ्फरनगर के रामपुर तिराहे पर पुलिस फायरिंग में 7 लोगों की जान चली गई थी और दर्जनों घायल हुए थे। विभिन्न राजनीतिक दलों और राज्य आंदोलनकारियों ने सभी दोषियों को सख्त सजा दिलाने और सरकार से इस पर पैरवी करने की अपील की है।